मेहंदी को करवा चौथ के दिन हाथों की सुंदरता और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। महिलाएँ इस दिन अपने हाथों और पैरों पर mehndi design बनवाती हैं,और यह व्रत के महत्व को और भी गहरा बनाता हैमहिलाएँ अपनी मेहंदी की डिज़ाइन चुनने और लगाने में समय बिताती हैं, जिससे वे अपने पति के प्रति अपनी मोहब्बत और समर्पण का संकेत देती हैं।
mehndi design for karwa chauth

मेहंदी का रंग चौथ व्रत के बाद कई दिनों तक रहता है और यह एक विशेष तरीके से महिलाओं की भावनाओं को दर्शाता है

इस व्रत को विशेष रूप से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चौथ तिथि को किया जाता है। इस दिन महिलाएं सवा रूपए की राशि की मेहंदी अपने हाथों में लगाती हैं और इसके बाद व्रत करती हैं।

व्रत के दौरान, महिलाएं भगवान चांद्रमा और उसके पति भगवान कुमार से अपने पतिदेव की दीर्घायु और सुख-शांति की कामना करती हैं। व्रत के समापन पर चांद्रमा की पूजा की जाती है और फिर पति के हाथों में अदृश्य रूप से पानी चढ़ाती हैं। इसके बाद, व्रत की कथा सुनाई जाती है और व्रत का फल प्राप्ति की कामना की जाती है।

इस पर्व का आयोजन खासतौर पर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश में किया जाता है।

मेहंदी चौथ व्रत एक हिन्दू धार्मिक परंपरा है जो विशेष रूप से उत्तर भारत में प्रचलित है। यह व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता है जिनके पति जीवित हैं। यह व्रत उनके पति की दीर्घायु और खुशी भगवान से प्रार्थना करने के लिए किया जाता है।

इस अवसर पर विशेष रूप से महिलाएं अपने सुहाग की लंबी आयु की कामना करती हैं और एक दूसरे के बीच प्यार और समर्थन का इजहार करती हैं।

मेहंदी चौथ एक हिंदी पर्व है जो विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। यह व्रत स्त्रियाँ अपने पतियों की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।

यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चौथी तिथि को मनाया जाता है, जिसे आमतौर पर कार्तिक चौथ भी कहते हैं।

मेहंदी चौथ व्रत का आयोजन उत्तर भारत के कई राज्यों में किया जाता है, जैसे कि पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली आदि। इस व्रत के दौरान पतिव्रता स्त्रियाँ सुबह से रात्रि तक निराहार रहती हैं और चांदनी चौक में सजकर बैठती हैं।
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व्रत की पारंपरिक विधियों में व्रत की शुरुआत पूर्व संध्या को की जाती है, जिसमें पतिव्रता स्त्री पूजा-अर्घ्य करती हैं और व्रत की कथा सुनती हैं। इसके बाद चाँद को देखकर प्रार्थनाएँ की जाती हैं और उसके बाद खाने की प्रारंभिक सर्विंदन का समय निर्धारित किया जाता है।
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सूर्यास्त के बाद, पतिव्रता स्त्रियाँ प्रारंभिक सर्विंदन करती हैं और फिर रात्रि के समय पूरे व्रत का विधिवत पूजन करती हैं। इसके बाद, उनके पति के चेहरे को देखकर महिलाएँ अपने पतियों के लिए ईश्वर से उनकी लम्बी आयु और खुशियों की कामना करती हैं। इसके बाद ही व्रत टूटता है और पतिव्रता स्त्री खाने पीने का आरंभ कर सकती हैं।

इस पर्व का आयोजन विशेष रूप से सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महिलाओं के बीच एकता और भगवान शिव-पार्वती की धार्मिक भक्ति को महत्वपूर्ण बनाता है।

यह व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा उनके पतियों की लम्बी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के लिए रखा जाता है। यह व्रत चौथ तिथि को किया जाता है, जो विभिन्न हिन्दू कैलेंडरों के अनुसार होती है।
व्रत के दौरान, पतिव्रता महिला रत्न, फल, फूल आदि का उपयोग करके अपने पति की लम्बी उम्र और उनके भले-भले रहने की कामना करती हैं। व्रत की पूजा में मेहंदी की बर्तनियाँ भी उपयोग होती हैं और महिलाएं अपने हाथों और पैरों पर मेहंदी लगाती हैं।